आहुति

आहुति
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तुम्हारे साथ रागात्मक संबंध….
और वीणा के तार सा झंकृत मेरा हृदय…..
तुम्हारा मेरा अद्भुत अनुराग ….
और अंखियों की लुकाछिपी…..
सुकून देती है।

एक तारतम्य हमारे बीच…..
और प्रेम की पंखुड़ियों से सजे मधुर शब्द….
जो देते हैं एक लय एक ताल….
और जाग उठती है जिजीविषा।

अट्टालिका पर रहते हो फिर भी ….
अगाध अनुराग में डूबे
तुम्हारे स्नेह निमंत्रण ……
जो बहती पवन के साथ मुझ तक पहुंच ही जाते है,
भिगो जाते हैं मुझे…
शीतल बौछार की तरह।

कुछ घड़ी धरती पर गुजारो……
बैठो मेरे पास कुछ कहो!

फिर यही अवशेष रह जाएंगे तुम्हारे पास मेरे प्रेम के …..
और दे देना
इस अनुराग के अवलंब की आहुति मेरे देहावसान पर जो शायद अगले जन्म तक नश्वर आत्मा के पास पहुंच जाएगी।

बंधी हुईं प्रीत की डोरी
फिर शायद किसी नए रूप में मिलवायेगी।

निमिषा सिंघल

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