इंसानियत के दुश्मन
जो इंसानियत की दुश्मन बन जाये, वो जमाअत कैसी।
खुदा ने भी लानत भेजी होगी, इबादत की ये बात कैसी।
खुद की नहीं ना सही, अपनों की तो परवाह कर लेते,
जिन्हें अपनों की परवाह नहीं, दिलों में जज़्बात कैसी।
जहाँ जंग छिड़ी मौत के खिलाफ, जिंदगी बचाने को,
वहाँ मौत के तांडव की, फिर से नई शुरुआत कैसी।
मौत किसी का नाम पूछ कर तो, दस्तक नहीं देती,
ये कोई मजहबी खेल नहीं, फिर यह बिसात कैसी।
जूझ रहे कई कर्मवीर, हमारी हिफाज़त के लिए,
मदद ना सही, फिर मुसीबत की ये हालात कैसी।
घरों में महफ़ूज रहें, मिलने के मौके और भी मिलेंगे,
जहाँ मिलने से मौत मिलती हो, फिर मुलाक़ात कैसी।
देवेश साखरे ‘देव’
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Pt, vinay shastri 'vinaychand' - April 8, 2020, 8:08 am
Nice
देवेश साखरे 'देव' - June 9, 2020, 12:24 pm
Thanks
Pragya Shukla - April 8, 2020, 2:20 pm
Very good
देवेश साखरे 'देव' - June 9, 2020, 12:24 pm
Thanks
Dhruv kumar - April 9, 2020, 10:05 am
Nyc
देवेश साखरे 'देव' - June 9, 2020, 12:24 pm
Thanks
Abhishek kumar - May 10, 2020, 10:50 pm
Good
देवेश साखरे 'देव' - June 9, 2020, 12:24 pm
Thanks
Satish Pandey - July 12, 2020, 2:43 pm
सुन्दर और भावपूर्ण