एहसास
क्यों झर-झर बहती आंखों में यूं आंसू बनकर आते हो,
और सूखी पत्ती जैसे दूर चले भी जाते हो
एहसास मेरा है नहीं तुम्हें क्या यही जताते रहते हो
और चलने वाली हवा में पानी सा बहते रहते हो
एक बूंद पड़ी दिल सिहर उठा जैसे की बारिश आती हो
पर नहीं पता वो पानी था या केवल एक छलावा था
महसूस किया जिसको मैंने, वो सपना सच था कभी नहीं
इस दुनिया में गम देने वालों की कमी रही है कभी नहीं
बढ़ती हूं मंजिल की तरफ़ फ़िर दिखती मंजिल कहीं नहीं
मिलने वाली हर चीज मिली जब सांस मेरी ही रही नहीं
याद सफ़र आया मुझको जब साथ मेरे तुम चलते थे
पर क़दम-क़दम चलते चलते तुम अपना रंग बदलते थे।
अतिसुंदर हृदयक भाव
धन्यवाद
Good didi
Thanks dear
Wellcome
Sahi kaha
,😍
👌👌👌
👏👏
Thanks
बहुत सुन्दर रचना
Thanks,🙏
👌👌
Thanks 🙏
Gjb se bhi Gjb
Thankyou ji
बहुत सुन्दर रचना।
Thanks
Nice