करो परिश्रम कठिनाई से

करो परिश्रम कठिनाई से, तुम जब तक पास तुम्हारे तन है ।
लहरों से तुम हार मत मानो, ये बात सीखो तुम मँक्षियारा से ।
जब मँक्षियारा नाव चलाता, विचलित नहीं होता वह विपरित धाराओं से ।
लाख सुनामी चक्रवात बबंडर से टकराकर वह लक्षय को भेद जाता है ।
गगन की जयघोष की नारा से उसकी आँखें नम जाता है ।

निरन्तर, कठिनाई, परिश्रम में ही छिपा भविष्य तेरे बंदे है ।
परिश्रम, कठिनाई, निरन्तरता से कभी मुँह मत मोड़ना बंदे ,
यहीं तो तेरे भाग्य-विधाता है ।
करे परिश्रम कठिनाई से जो नर वही तो पाते अपना भविष्य-लक्ष्य है ।
कर्महीन, विषयरम, इन्द्रियनिर्लिप्त मनुष्य ऐसे ही जग में जीवन गँवाते है ।
और अर्थ-अभाव दर-दर मारे फिरते है ।

तन है चोला मिट्टी का, वस्त्र तेरे कोई शान नहीं ।
मिट्टी में मिट्टी मिल जायेंगे , वस्त्र तेरे उतार लिये जायेंगे ।
कर लो सदुपयोग नर तन का, यहीं तो काम आवेंगे ।
जो नर मिट्टी को मिट्टी समझे, कड़ी -धुप में अन्न उगाते (बीज बोते) ।
वहीं नर फसल काटते छाँव में ।।
ऐसे ही नर कहलाते जगत में दिव्यस्वरूप महान है ।
करो परिश्रम कठिनाइ से जब तक पास तुम्हारे तन है ।।

परिश्रम, कठिनाई, असफलता, निरंतरता सफलता के हैं चार स्तम्भ ।
इन चारों स्तम्भों से गुजारना ही सफलता के हैं प्रथम उद्देश्य है ।
निरन्तरता नर को गुणों को निखारता, परिश्रम किसी कर्म के योग्य बनाता ।
असफलता सफलता की पहली सीढ़ी होती व जीवन की कठिनाई हैं सफलता की गगनचुंबी ।
करो परिश्रम कठिनाई से जब-तक पास तुम्हारे तन है ।।
लहरों से तुम हार मत मानो ये बात सीखो तुम मँझियारा ।।
कवि विकास कुमार

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