कितनी पी लेते हो !!
कितनी पी लेते हो जो
होश नहीं रहता है
जमाना तुम्हें शराबी
कहके हँसता है…
इतना धुत हो जाते हो कि
कुछ भी याद नहीं रहता है!
किसे क्या कहते हो
कुछ होश तुम्हें रहता है…
पीटते बच्चों को हो
नशे में तुम
दुःखी करते हो अपनी
पत्नी को तुम…
छोंड़ते कहाँ हो तुम
पुरखों तक को
हो गली के गीदड़
बनते शेर हो तुम…
लाज आती ना तुमको
करनी पर अपनी
ताव देते हो तुम
मूँछों पर अपनी…
कहाँ की है यह
मर्दानगी बताओ
नालियों में गिरते चलते हो
अब ना और छुपाओ…
सब रहता है याद तुम्हें
नशे का सिर्फ बहाना
ये नाटक जाकर तुम
कहीं और दिखाना…
ना जाने कितने घर नशे में
बर्बाद हो गए
ना जाने कितने लोग
मौत की नींद सो गए…
छोंड़ दो आज से तुम ये
दारू पीना
सीख लो बीवी बच्चों की
खातिर जीना…
वाह प्रज्ञा, एक पत्नी का अपने पति से शराब ना पीने का आग्रह करती हुई अति उत्तम रचना है और जो लोग इस बुरी लत के शिकार हैं उनके लिए एक संदेश देती है👏👏…. Great job.
जी..
कल के घटना देखकर मन में यह भाव उठे
और कविता बन गई..
Very nice…keep it up.
सुंदर
Thanks
आपने यथार्थ को प्रस्तुत किया है प्रज्ञा जी, शराब ने कई परिवार बर्बाद कर के रख दिये हैं। जिस परिवार के सदस्य को शराब की लत पड़ गई वह काफी पीछे चला जाता है। सब कुछ बिखर जाता है। आपने जीवन में व्याप बुराई को सच्चे शब्दों में उभारा है। लेखनी को सैल्यूट।
आभार…