कुमाऊँनी : पर्वतीय कविता
झम झमा बरखा लागी
ऐ गौ छ चुंमास
डाना काना छाई रौ छ
हरिया प्रकाश।
त्वै बिना यो मेरो मन
नै लिनो सुपास,
घर ऐ जा मेरा सुवा
लागिगौ उदास।
पाणि का एक्केक ट्वॉप्पा
झम झमा बरखा लागी
ऐ गौ छ चुंमास
डाना काना छाई रौ छ
हरिया प्रकाश।
त्वै बिना यो मेरो मन
नै लिनो सुपास,
घर ऐ जा मेरा सुवा
लागिगौ उदास।
पाणि का एक्केक ट्वॉप्पा
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छूट गए अंश —-
पाणि का एक्केक त्वाप्पा
कुनेंयीं तू ऐ जा
विदेश बै मेरा सुआ
चुंमास में ऐ जा।
पड़ौसै का परु मौ ले
लिंटर खिति हा छ
हामरा पाथर रडया
च्यून नौ छ अगास।
भैर लगै बारिश छ
भीतर बारिश
आंखां में लै बारिश छ
सब ठौर बारिश।
👌👌
bahut sundar rachna
बहुत खूब
पूर्णागिरि हमारे चम्पावत जिले में ही है। स्वागत
हम भी आ रहे भाई के साथ
मीठी भाषा
स्वागत, आदरणीया , प्रज्ञा जी
वाह, कुमाउनी कविता
धन्यवाद जी
Achchi kavita
धन्यवाद जी
Sundar
धन्यवाद
Atisunder kavita
Sadar Dhanyvad
Waah, Kumauni me
Thanks
ग्रुप में पहली कुमाउनी कविता प्रस्तुत करने पर हार्दिक धन्यवाद जी
Dhanyvaad