खामोश एहसास
मन्ज़िल की तलाश में खुद राहों को आना पड़ा,
ख्वाबों की तलाश में जैसे आँखों को जाना पड़ा,
चाँद सूरज जब रौशनी कर न सके मेरे दिल में,
छोड़ कर घर अपना फिर जुगनुओं को आना पड़ा,
बहरी होने लगी जब हवाओं की बहर कहानी,
खामोश रहकर फिर एहसासों को सुनाना पड़ा,
रात दिन ढूढ़ता रहा मैं जिस लम्हें की आहट को,
एक साँझ अपने ही हाथों वो लम्हा छिपाना पड़ा,
दोस्ती इतनी गहरी रही अपने खुद के पायदान से,
के रिश्तों की म्यान से “राही” को बाहर लाना पड़ा।।
राही अंजाना
मीजान – संतुलन/तराजू
सुंदर
Plz vote
बढ़िया
Plz vote
Thnx
Plz vote me
Good
Good
Vote plz
वोट मी
Ok
Good
Vote plz
Ok
ओके
सब को प्रणाम
Very good
Vote me
बहुत ख़ूब राही जी
अच्छा लगता है
बहुत सुन्दर
Sunder rachana
वाह सर जी
Very nicely explain
Nice
Nice poem
Good
Nyc