खूब खेली मोहन मेरे दिल से होली
खूब खेली मोहन
मेरे दिल से होली
नैनों से नींदो की
कर ली है चोरी
तुझसे मिलने पहले
मैं थी चित् कोरी
अब चित मेरा तुझ में
ना मिले कोई ठोरी
तू आकर मिले ना
क्यों मुझसे कठोरी
खूब खेली मोहन
मेरे दिल से होली
पहले तुम ने बांधी थी
प्रेम की यह डोरी
अब रह ना सके तुम बिन
यह ब्रज की छोरी
सुधे मार्ग जाती थी मैं तो
बुलाते थे तुम ही
कहे राधा भोली
खूब खेली मोहन
मेरे दिल से होली
कहती है सखीयाँ
मोय मोहन दिखोरी
तू तू करे है प्रेम
तो काहे तोहे ना दिखोरी
मेरा बनाके मजाक
तुम सताती हो क्यों री
जहां बसे श्याम वहां
रहती है किशोरी
सुंदर रचना
🙏🙏🙏
Good
💐💐💐💐
Nice
Thanks
Wah
Thankyou 💐💐💐
Nyc
Thankyou