चितचोर सावन

ए साजन आम के बाग में,
झूला लगा दे।
अब की बरस
सावन के मधुर गीत सुना दे।
रिमझिम बारिश में
भीगे है मेरा तन बदन
मोरनी की भाँति
मै बलखाउँ
ऐसा एक धून बजा दे।
चारो तरफ के रुत है
प्रेम – ए- इकरार के
सतरंगी रंग मन को लूभाए
इन्ही रंगो से मुझे सजा दे।
जब से सावन आए
आए दिन बहार के
प्रेम रस की मै प्यासी
बस एक घूँट पिला दे।
नींद चुराए
चितचोर सावन के महीना
इन झूलो की कतारो में
मेरा भी झूला लगा दे।

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