जब हम बच्चे थे

जब हम बच्चे थे ,
चाहत थी की बड़े हो जायें |
अब लगता है ,
कि बच्चे ही अच्छे थे ||
अब न तो हममें कोई सच्चाई है ,
न ही सराफ़त ,
पर बचपन मे हम कितने सच्चे थे |
जब हम बच्चे थे ||
अब न तो गर्मी कि छुट्टी है ,
न ही मामा के घर जाना ,
माँ का आँचल भी छूट चुका है ,
पापा से नाता टूट चुका है ,
पहले सारे रिस्ते कितने सच्चे थे |
जब हम बच्चे थे||
न तो कोई चिंता थी ,
बीबी बच्चे और पेट की,
न ही कोई कर्ज़,
बैंक ,एलआईसी या सेठ की ,
सिर्फ़ और सिर्फ़ ,
हर दिन अच्छे थे |
जब हम बच्चे थे ||

ओमप्रकाश चंदेल”अवसर”

पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़

7693919758

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