मैं बच्चा बन जाता हूँ

कविता … “मैं बच्चा बन जाता हूँ”

न बली किसी की चढ़ाता हूँ।
न कुर्बानी से हाथ रंगाता हूँ।
 रोने की जब दौड़ लगती है,
मैं गिद्धों पर आंसू बहाता हूँ।
न मैं मंदिर में जाता हूँ।
न मस्जिद से टकराता हूँ।
 ईश्वर मिलने की चाहत में,
 मैं विद्यालय पहुँच जाता हूँ।

छोटे-छोटे कृष्ण, सुदामा,
पैगम्बर, बुद्ध मिल जाते हैं।
हमसे तो बच्चे ही अच्छे,
जो एक ही थाली में खाते हैं।
जाति, धर्म का ज्ञान नहीं
बच्चे मन के सच्चे हैं।
सच्चा बनने की चाहत में,
मैं भी बच्चा बन जाता हूँ।
क्या आप बच्चा बनेंगे..?
ओमप्रकाश चन्देल ‘अवसर’
पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़

7693919758

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

छत्तीसगढ़ के घायल मन की पीड़ा कहने आया हूँ।

मैं किसी सियासत का समर्थन नहीं करता हूँ। भ्रष्टाचार के सम्मुख मैं समर्पण नहीं करता हूँ॥ सरकारी बंदिस को मैं स्वीकार नहीं करता हूँ। राजनीति…

Responses

+

New Report

Close