Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Related Articles
व्यंग्य —- पूंछ पुराण
व्यंग्य …………………………………… ****** पूंछ— पुराण (समग्र)****** कभी देखा है ;आपने , ऐसा कुत्ता ! जो ; देखने में हो छोटा–सा मगर;पूंछ उसकी लंबी हो यानि…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
NASHA
चल अाज सब कुछ भुला के एक मज़ा सा करते हैं, तफ़रीकें मिटा के दिल-ओ-दिमाग़ को एक रज़ा सा करते हैं, दुनिया की सुद्ध में…
ऐसा क्यों है
चारो दिशाओं में छाया इतना कुहा सा क्यों है यहाँ जर्रे जर्रे में बिखरा इतना धुआँ सा क्यों है शहर के चप्पे चप्पे पर तैनात…
सुन्दर प्रस्तुति
धन्यवाद जी
पता नहीं क्यों लोग
इस कदर दुखी करते हैं
खोखले ढकोसलों से
मन को दुखी करते हैं।
जी बिल्कुल, लेकिन यदि हम अपनी बेटियों को शिक्षा के माध्यम से बुलंद बना दें तो ये सब कम हो सकता है…… समीक्षा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद जी 🙏
बहुत सच्ची पंक्तियाँ लिखी हैं आपने
सादर धन्यवाद जी 🙏
अति सुन्दर
समीक्षा भी अति सुंदर लगी है बहना।
बहुत खूब
बहुत शुक्रिया भाई जी 🙏
नारी निराश नहीं हो सकती है। बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, लेखनी में काफी क्षमता है आपकी। वाह
प्रेरणदायक समीक्षा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।🙏🙏
यूं ही प्रेरणा देते रहें ।
Bahut hi sundar
बहुत सारा धन्यवाद है ईशा जी 💐
वाह वाह
Thank you very much Piyush ji 🙏
नारी हो निराशा नहीं,
very nice
आपने भाव को बहुत अच्छे से समझा है इन्दु जी समीक्षा हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏