तुम्हारा इन्तज़ार है

क्या हुआ?
मुड़ क्यू गए?
जब आए थे मुझसे मिलने!
तो मिले बिना
चल क्यों दिए?
कुछ खोज रही थी
तुम्हारी निगाहे मेरे चेहरे में!
बंद आंखों से भी जान लिया मैंने।
शायद बिना देखे पहचान लिया मैंने।
तुम्हारी रूह से वाकिफ थी मेरी रूह।
शायद इसलिए ही पकड़े गए।
धड़कनों ने धड़कनों की पहचान कर ली थी।
जिस्म जरूर दो थे मगर एक जान कर ली थी।
शायद इसीलिए
द्रुतगति से चल रही थी सांसे
और तुम्हें पता ही नहीं चला
कि तुम पकड़े गए हो।
तुम चल भी दिए
और मेरी रूह को
जो लिपटी थी तुमसे
साथ लेके चल दिए।
मैं सोती ही रह गई
प्राण विहीन निस्तेज।
अब इस बिना रूह के जिस्म को
ढोना है मुझे
हां तुम से बिछड़ कर अब
बहुत रोना है मुझे।
रोने के लिए जिन कंधों की जरूरत है मुझे
पर वह तो तुम्हारे पास है!
अब वापस मुड़ के लौट भी आओ प्रिय!
देखो !
इन पथराई आंखो
को आज भी इंतजार है तुम्हारा ।
निमिषा सिंघल
Good
Thank you
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🌺🌺
Nice
🙏🙏
बहुत अच्छा।
🌺🙏
बहुत सुन्दर
🌺🌺