दलित

इस आजाद भारत में
आज भी मेरी वही दशा है.
छुआ – छूत का फंदा
आज भी मेरे गले में यूहीं फंसा है.
मै हूँ दलित गरीब
भेदभाव का शिकंजा मेरे पैरो में कसा है.
मै तिल तिल कर जी रहा
समाज मेरे बुरे हाल पर हंस रहा है.
ये मत भूलो, जिस घर में तुम हो रहते
वो मेरी दिहाड़ी मजदूरी से ही बना है.

फसल उपजाऊ सबकी भूख मिटाऊँ
पर खुद भूख से मै ही लड़ता हूँ.
साथ चलने का हक़ भी मै ना पाऊं
पर सबके उठने से पहले सड़के साफ मै ही करता हूँ.
जात के नाम पर वोटो से कितना खुद को बचाऊ
पर राजनीती का अखाडा मै ही बनता हूँ.
महलो तक का भी निर्माण मैंने किया
पर आज भी मै झोपड़े में ही बसता हूँ.
हजारों इमारतें बना चुका
पर एक ईंट जितना मै सस्ता हूँ.

हजारों साल हो गए सहते -सहते
नींच जात होने के अपमान मे
ना कभी आगे बढ़ने दिया
अछूत होने के गोदान ने
जाने क्यों रोंद कर रखना चाहा
पैरो तले इंसान को ही इंसान ने
अब समानता का अधिकार
मुझे दिया है सविधान ने
उससे पहले तो जीने का हक
मुझे दिया है उस भगवान ने

🌋🌋🌋नीतू कंडेरा🌋🌋🌋🌋

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Responses

    1. सारी जिंदगी फूलों पर चलकर
      कुछ सचाइयों का भी सामना कर लो डटकर

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