दायरे

किन्नर
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व्यंगात्मक हंसी में भी प्रेम तलाशते,
अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर यह संवेदनाओ से भरे हृदय
अपनी दो जून की रोटी के लिए
आपके घर खुशियों के मौकों पर
भर भर झोली दुआएं दे जाते हैं।
बदनसीबी की रेखाएं
हाथ में लेकर पैदा हुए ये इंसान….
मां बाप के दुलार के लिए तड़पते ही रह जाते हैं।

जिन की दुआएं औरों के लिए आसमानों में क़ुबूल की जाती है…
अपने लिए दुआओं के नाम पर इनकी झोली खाली ही रह जाती है।

एकांत में भगवान से शिकायत करते ये इंसान
मांगते हैं बस एक ही दुआ
हे भगवान !अगले जन्म में मुझे ये रूप ना देना।

अपने दुखों को ताली बजा- बजाकर कुछ कम करना चाहते हैं
और आपके सुख में ताली बजा नाच गाकर
आपकी खुशी के लिए दुआएं दे जाते हैं।

घटिया मानसिकता रखने वाले लोग
इन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं
कोई पूछे इस धुले- पूछे समाज से…
आखिर गलती क्या है इनकी जो इन्होंने इस रूप में जन्म पाया!

भगवान ने भी एक ही शरीर में स्त्री-पुरुष दोनों के गुण देकर इनको छला है।

जब ये रूप भगवान ने ही दिया है
तो फिर किस बात का मजाक…
किस बात की घिन…
क्यों व्यंग बाण चला चला कर पहले से ही छिदे हुए दिल में और छेद कर देना …
इस क्रूर समाज की नियति बन चुका है।

इनकी पैदाइश भी बदकिस्मती और मौत उससे भी बड़ा परिहास…

जूते चप्पलों से मारकर बुरी तरह मृत शरीर को घसीटा जाता है।

इस तरह एक सुंदर आत्मा को इस क्रूर संसार से विदा किया जाता है।
यह कहकर
इस रूप में फिर वापस ना आना किन्नर।
तुम फिर वापस ना आना इस रूप में किन्नर
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निमिषा सिंघल
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