दिया
सुनो!
तुम सागर की तरह क्यों लगते हो?
शब्दों में गहराई बहुत है
मानसिक द्वंद छिपाने में
चतुराई बहुत है।
बाहर से एक शांत सतह
भीतर गहरे तूफ़ान से लगते हो।
प्रेम में हारे हुए लडको की तरह
विरह और लौट आने की उम्मीद की शायरी लिखते लिखते
ना जाने कब जिंदगी से कुछ मांगना भी छोड
बस बहते जा रहे हो
बहाव के संग।
जिंदगी से आक्रोश पुराना लगता है
कहीं बहुत दूर रोशन दिए की तपिश
और ऑक्सीजन
डालती रहती है जान एक बेजान बुत में।
वैसे दिया काफी है
एक उम्र प्रेम में डूबे रहने के लिए।
देवदास।
निमिषा सिंघल
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Antariksha Saha - April 4, 2020, 7:14 am
Bahut umda
NIMISHA SINGHAL - April 14, 2020, 2:40 pm
हार्दिक आभार
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - April 4, 2020, 8:48 am
Nice
NIMISHA SINGHAL - April 14, 2020, 2:40 pm
🙏🙏
NIMISHA SINGHAL - April 14, 2020, 2:40 pm
🙏🙏🙏🙏
Pragya Shukla - April 4, 2020, 1:19 pm
Nice
Priya Choudhary - April 4, 2020, 7:13 pm
Bhot sunder 👏👏
NIMISHA SINGHAL - April 14, 2020, 2:40 pm
Thank you so much
Dhruv kumar - April 9, 2020, 10:13 am
Nyc
NIMISHA SINGHAL - April 14, 2020, 2:40 pm
हार्दिक आभार