देश की राजनीति बीमार है
चारों तरफ से लोगों ने शोर मचाया हर अख़बार और टीवी चैनल पर आया देश का हर एक नागरिक चिल्लाया देश में चढ़ा कैसा ये खुमार है आज देश की राजनीति बीमार है इतना सुनते ही हर व्यक्ति सोचने लगा जाकर नेताजी से राजनीति का हाल पूछने लगा तब नेताजी बोले :-“राजनीति तब तक कैसे हो सकती है बीमार जब तक हमारा है उस पर अधिकार ” हाँ , लेकिन कुछ बीमार है ,डायबिटीज रूपी टी.बी.औरआतंकवाद रूपी बुखार है ,कैंसर जैसा भ्रष्टाचार है तब एक नागरिक बोला :-“नेताजी सबसे पहले समाज के बारे में सोचिए कि आज समाज हर तरफ़ दंगों से सटा हुआ है देखो ये कितनी जातियों में बंटा हुआ है ” इसलिए थोड़ा ध्यान समाज में लगाओ, इन जातियों में एकता की भावना बढ़ाओ नेताजी बोले -“अरे मूर्ख ,समाज तो जातियों में ही बंटते हैं और ये जातियां ही तो हैं जिनके कारण वोट बढ़ते हैं ” तभी दूसरा नागरिक बोला – नेताजी थोड़ा ध्यान देश की तरफ लगाओ सबसे पहले आतंकवाद मिटाओ, आखिर हम इसको क्यों नहीं मिटा सकते, क्या हम आतंकवाद से डरते हैं? नेताजी बोले – हमारे दिए गए आश्वासनो से ही तो शहिदों के घर चूल्हे जलते हैं फिर भी ,यदि मामला गंभीर नजर आता है तो ध्यान और लगा देंगे, अबकि बार शहिदों का अनुदान 5 हजार और बढ़ा देंगे तभी पीछे से एक पंडित बोला – “नेताजी रामायण और गीता का मान बढा़ओ सबसे पहले ‘हिंदू’ को राष्ट्रीय धर्म बनाओ ” नेताजी बोले :- ” पंडित जी, वैसे तो हम तन,मन,धन से आपके साथ हैं लेकिन हिंदू को राष्ट्रीय धर्म नहीं बना सकते,क्योंकि हमें जीतने में अन्य धर्मों का भी हाथ है” तभी अंत में एक आम आदमी बोला-” साहब हमारे लिए भी कुछ कीजिए ताकि हमारा जीवन भी आसानी से चल सके हमें ज्यादा कुछ नहीं चाहिए बस दोनों वक्त घर में चूल्हा जल सके ” नेताजी बोले – “हाँ-हाँ ,आपके बारे में सोचना भी हमारी मजबूरी है, क्योंकि 5 साल बाद आपकी फिर जरूरी है ” अंत में ,सबने मिलकर सोचा कि -आज जो राजनीति बीमार है, इसके केवल हम जिम्मेदार हैं, क्योंकि हम ही सरकार बनाते हैं और बुनते हैं, अरे राजनीति तो बीमार होगी ही जब हम बीमार नेताओं को चुनते हैं” इस बीमार राजनीति का हम तभी समाधान पाएँगें, जब देश के युवा राजनीति में आएँगें
(संदीप काला)
सिस्टम पर अच्छा व्यंग्य है संदीप जी, बहुत ख़ूब
Thank you very much Mam
लेखनी पर आपकी बेहतरीन पकड़ है संदीप जी, सुस्पष्ट शैली , प्रखर विचार, यथोचित निखार है। कथ्य व शिल्प का बेहतरीन तालमेल है। गद्यात्मक शैली में पद्यात्मकता है, बहुत खूब। keep it up, very nice
कविता की समीक्षा करने के लिए धन्यवाद सर जी, आप अपना आशीर्वाद बनाएँ रखें
बहुत ही सुन्दर
Thank you very much
वाह
बहुत सुंदर
समाज और राजनीति को आईना दिखाते हुए साफ और सुन्दर प्रस्तुति। इसे व्यंग्य कहना उचित नहीं होगा क्योंकि ये तो यथार्थ चित्रण है। आपकी लेखनी का क्या कहना…..!!!!!!! अतिसुंदर 🌹
अरे ! सर, मैं केवल कविता का विद्यार्थी हूँ, मुझे प्रोत्साहन देन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद पंडित जी आपका
Very good👍👍
Thank you very much Sir ji
लंगड़ाया है सारा सिस्टम तंज बहुत अच्छा कसा है
लंगड़ाय सिस्टम को केवल साहित्य ही सहारा दे सकता है, समीक्षा के लिए बहुत – बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी