नारी हो या खुशियां सारी हो
कितनी जाजिब हो तुम
कितना मीठा कहती हो,
सबको खुश रखने को
सब कुछ खुद पर सहती हो।
परिवार बनाने वाली हो
प्यार लुटाने वाली हो
खुद तो सब कुछ हो मेरा
मुझको सब कुछ कहती हो।
जब से तुम आई जीवन में
तब से खुशहाली आई,
बाहर-भीतर घर-आंगन में
रौनक ही रौनक भर आई।
जन्नत बना दिया तुमने
अफसुर्दा आंगन को मेरे,
गुलशन महक उठा खिलकर
दसों दिशाओं में मेरे।
नारी हो या खुशियां सारी हो
जो जीवन में भर आई हैं,
तुम हो साथ तब ही मैंने
मंजिल की राहें पाई हैं।
सुन्दर
सादर धन्यवाद जी, 🙏🙏
✍👌👌👌👍
बहुत बहुत धन्यवाद
पति पत्नी के ख़ूबसूरत रिश्ते को दर्शाती बहुत ही सुन्दर रचना।
कवि ने अपनी भावनाओं को बेहद शानदार तरीके से व्यक्त किया है।
………..लेखनी को प्रणाम…
कविता के भाव तक पकड़ बनाने में आपकी पारखी नजर की क्षमता अतुलनीय है। बहुत बहुत धन्यवाद गीता जी, प्रणाम
वाह पाण्डेय जी
धन्यवाद जी
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां।
बहुत बहुत धन्यवाद
अतिसुंदर
सादर धन्यवाद जी
बहुत बढ़िया
धन्यवाद जी