परेशाँ क्यूँ है
दिले-नादाँ, तू इतना परेशाँ क्यूँ है।
खता क्या हुई, इतना पशेमाँ क्यूँ है।
इज़हारे-इश्क, कोई गुनाह तो नहीं,
तेरे चेहरे की रंगत, फिर हवा क्यूँ है।
इंतज़ार तो कर, इकरारे-ज़वाब का,
यकीं तो रख, ख़ुद पर शुबहा क्यूँ है।
ज़रूरी नहीं, पूरा हो इश्क सभी का,
गम के प्याले में तू फिर डूबा क्यूँ है।
वो भी तुम्हें चाहे, ये ज़रूरी तो नहीं,
एक तरफ़ा प्यार से तू ख़फा क्यूँ है।
शायद मंजिल तेरी कुछ और तय हो,
बजा सोचा जिसने, वो ख़ुदा क्यूँ है।
देवेश साखरे ‘देव’
पशेमाँ- शर्मिंदा, शुबहा- संदेह, बजा- उचित
काबिल -ए-तारीफ़
बहुत बहुत धन्यवाद
Nice
Thanks
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धन्यवाद
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शुक्रिया
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Wah
शुक्रिया
सही है
धन्यवाद
सुन्दर
धन्यवाद
बहुत खूब