प्रारब्ध

प्रारब्ध
———
सदियों से ठंडी, बुझी, चूल्हे की राख में कुछ सुगबुगाहट है।

राख़ में दबी चिंगारियों से चिंतित हूं मैं!

अपने गीले- सूखे मन की अस्थियों का पिंजर…
दबा आयी थी मैं
उस गिरदाब (दलदल) में…..
वहां कमल उग आए है।

राख में दबी चिंगारियों के भग्नावशेषों से उठता धुंआ जैसे
लोहे के समान
चुम्बक की ओर खिचा चला जा रहा हो..
धुएं को जैसे खीच लिया गया हो फुंकनी से उल्टा ।
बांध लिया हो जैसे किसी अदृश्य पाश में।
हवा में उड़ती स्वर लहरियां, आलिंगन जैसे खीच लिया हो मैंने!
ओढ़ लिया हो जैसे अक्षुष्ण अनुराग का मौन।
जानती हूं …..अंगार पहन लिया है मैंने।
अब जलना ही नियति है मेरी
यह भी जानती हूं
तबले की थाप बिना स्वर लहरी के राग को पूर्णता ना दे पाएगी।

इस राग का अधूरापन ही प्रारब्ध है मेरा।
पिंजरबद्घ अनुराग का उन्माद,
सुलग – सुलग ठंडा हो जाएगा,
शांत हो जाएगा उस दिन…
जिस दिन रुक जाएगी मेरी कलम की अनवरत यात्रा मेरे साथ।
निमिषा सिंघल

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)

वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये माता…

Responses

New Report

Close