Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Tags: संपादक की पसंद
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
“हाय रे ! कितनी लोभी दुनिया”
हाय रे ! कितनी लोभी दुनिया हाय रे ! कितनी लोभी… अपनी इज्जत बाजारू कर घर की चलती रोटी… हाय रे ! कितनी लोभी दुनिया…
अलख जगे आकाश
तन कुँआ मन गागरी, चंचल डोलत जाय ! खाली का खाली रहे, परम नीर नहिं पाय !! मोती तेरा नूर मैं, देखूं चारों ओर…
अलख जगाआकाश
तन कुँआ मन गागरी, चंचल डोलत जाय ! खाली का खाली रहे, परम नीर नहिं पाय !! मोती तेरा नूर मैं, देखूं चारों ओर…
मैं छत्तीसगढ़ बोल रहा हूँ
मै चंदुलाल का तन हूँ। मैं खुब चंद का मन हूँ। मैं गुरु घांसी का धर्मक्षेत्र हूँ। मैं मिनी माता का कर्म क्षेत्र हूँ।। मैं…
सुन्दर
धन्यवाद
Nice
Thanks
वाह
धन्यवाद..
👌
Thank you mam
👏👏
बहुत बहुत धन्यवाद
वेलकम
Very nice poem
Thank you very much 🙏
Bahut khoob
बहुत बहुत धन्यवाद आपका कमला जी 🙏