बाद मरने के….
बाद मरने के अपने, हम बहुत रोए
उन्हें पता ही ना चला, उन्हें लगा हम थे सोए
कुछ देर बाद, उन्हें हुआ अहसास,
रो के बोले,”क्यूं चले गए मेरे ख़ास”
किसी को खोज रही थी नज़र
वो आ गए सुन के हमारी ख़बर
उन्हें देख कर मुस्कुराई अंखियां,
लो आ गईं मेरी चंद सखियां
उनके होठों पे तारीफें थीं, आंखों में थे .गम
बस यही चंद यादें संग ले चले हम।
उत्तम
खूब
बहुत बहुत शुक्रिया 🙏
जीते जी मनुष्य को पता ही नहीं चलता कि अपना शुभचिंतक कौन है, मृत्यु के बाद की स्थिति को कल्पनात्मक शैली में उतारने का सफल प्रयास किया गया है। पंक्तिगत सौंदर्य की प्रधानता है, बहुत खूब
आपकी प्रेरणादयक समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार 🙏…. इससे मुझे बहुत प्रोत्साहन मिलता है।
कवि की कल्पना बहुत ही उम्दा है मरने के बाद कैसी स्थित होती है इसको अपनी काल्पनिक दृष्टि से अपनी कविता में कलम के माध्यम से उतारने की कोशिश कवि की साहित्य सर्जन करने की क्षमता को प्रदर्शित करती है भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों मजबूत है बहुत सुंदर
वाह वाह
Thank you Kamla ji 🙏
बहुत ही सुंदर
Thank you Piyush ji 🙏