“बालू का ढेर”
ख्वाहिशों की बदलियां
छटने लगी हैं आजकल
मुहब्बत की रेत फिसलने
लगी है आजकल
काजल आँखों का दुश्मन
बन बैठा है
मेहंदी से भी अब कोई
कहाँ नाम लिखता है
दिल की किताब के सारे
पन्ने फट गये हैं यूँ
किसी भी तरह से ना कोई
पन्ना जुड़ता है
बालू के ढेर पर बैठी हूँ
आशियां बनाने समुंदर में
अब कहाँ कोई ज्वार
उठता है
ले जाएगा बहाकर एक रोज़
कोई समुंदर में बहाकर
ये खयाल आजकल
बार-बार उठता है…
ले जाएगा एक रोज़ कोई समुंदर में बहाकर…
कृपया यह पढ़ें
क्या बात है, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
आभार
तन्हाइयों में हृदय की तड़प का बहुत ही खूबसूरती से वर्णन किया गया है ..”. मुहब्बत की रेत फिसलने लगी है आजकल
काजल आंखों का दुश्मन बन बैठा है”
हृदय स्पर्शी पंक्तियां….।
समुंदर में बहाकर ले जाने वाली पंक्ति ने तो कसम से जान ही निकाल दी प्रज्ञा। वेदना की पराकाष्ठा है ये रचना । बहुत अच्छा लिखती हो ।
…..God bless you sis.
बहुत बहुत आभार दी इतनी अच्छी समीक्षा के लिए
आपको अच्छी लगी बस मेरा लिखना सफल हुआ…विरह, वियोग और वेदना यही मेरी खूबी है भाव दिल से निकलते हैं सीधे..
बेहतरीन रचना
Tq
बहुत सुंदर पंक्तियां
Tq
Very nice😊👏👍
Tq
बहुत ही सग
Tq
बहुत बेहतरीन
Thanks