बेटी हूँ हां बेटी हूँ
बचपन से ही सहती हूँ,
मैं सहमी सहमी रहती हूँ,
छुटपन में कन्या बन कर संग माँ के मैं रहती हूँ,
पढ़ लिखकर मैं कन्धा बन परिवार सम्भाले रखती हूँ,
फिर छोड़ घोंसला अगले पल मैं पति घर में जा बसती हूँ,
पत्नी रूप में भी मैं हर बन्धन में बन्ध कर रहती हूँ,
खुद के ही पेट से फिर माँ बनकर मैं (बेटी) जन्म अनोखा लेती हूँ,
पढ़ जाऊ तो नाम सफल और जीवन सरल कर देती हूँ॥
बचपन से ही सहती हूँ,
मैं सहमी सहमी रहती हूँ,
मैं बेटी हूँ मैं बेटी हूँ मैं हर रंग में ढलकर रहती हूँ॥
राही (अंजाना)
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सीमा राठी - January 31, 2017, 2:50 pm
nice
राही अंजाना - January 31, 2017, 6:42 pm
Dhnywaad
Abhishek kumar - November 25, 2019, 7:15 pm
Good
Satish Pandey - July 31, 2020, 9:42 am
वाह वाह
Abhishek kumar - July 31, 2020, 9:45 am
👏👏