मन करता है…..

मन करता है…
कि जी लूं कभी अपने हिस्से का जीवन
कुछ न सोचूं न ही कुछ समझूँ।

बन यायावर …
देखूँ सब कुछ चहुँ दिशाओं मे
कुछ न माँगू न ही कुछ जानूं।

मन करता है…
कि बन फक्कड आवारा घूमू
कुछ न खाऊँ न ही कुछ पीयूं।

मन करता है…
बस………. मन करता है

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

ठान लूँ गर

ठान लूँ गर मैं तो कुछ भी कर सकती हूँ ठान लूँ गर मैं तो असंभव भी संभव कर सकती हूँ ठान लूँ गर मैं…

Responses

New Report

Close