माँ
आँखे तुझ पर थम गई जब तुझको बहते देखा।
सोच तुझमे रम गई जब तुझको सेहते देखा ।।
अपनी कलकल लहरों से तूने प्रकृति को संवरा है।
सबको शरण में लेती माँ तू तेरा ह्रदय किनारा है।।
हमे तू नजाने कितनी अनमोल चीज़े देती है ।
और बदले में हमसे कूड़ा करकट लेती है।।
खुद बच्चे बन गए,तुझको माँ कह दिया।
तूने भी बिन कुछ कहे हर दर्द को सेह लिया ।।
तेरे जल में कितने जलचर जलमग्न ही रहते है।
और कर्मकाण्ड के हथियारो से जल में ही जलते रहते हैं।।
पहले तुझमे झांक कर लोग खुद को देख जाते थे।
मन और मुँह की प्यास बुझाने तेरे दर पर आते थे।।
मगर आज जब में पास तेरे आता हूँ।
मन विचलित हो उठता है जब खुद को काला पता हूँ।।
तू रोती भी होगी तो हम देख न पाते हैं।
क्योंकि तेरे आंसू तुझसे निकलकर तुझमे ही मिल जाते हैं।।
इतना सब सहकर भी तूने हमे अपनाया है।
और इसीलिए ही शायद तूने माँ का दरजा पाया है।।
ये फूल ये मालायें सब दिखावे का सम्मान है।
हमे माफ़ कर देना माँ हम नासमझ नादान हैं।।
तू जो चली गई तो तुझे ढूंढेंगे कहाँ।
हमे छोड़कर हमसे दूर कभी न जाना माँ।।
Save our lifelines
Save our rivers…..
??????????
Pradumnrc?
Bahut khoob 🙂
nice poetry 🙂
nice