मातृत्वसुख

हर माँ शिशु के जीवन को संवारती
खुद को खोकर, हर पहलू को निखारती ।
की कभी वह, स्वपहचान की भी अनदेखी
कभी गहरी निद्रा पलकों पे इसकी नहीं देखी
एक हल्की सी आहट, थोड़ी-सी छटपटाहट
कयी आशंकाओ से घिरी,आत्मा तक कराहती,
खुद को खोकर, हर पहलू को निखारती ।
गर्वित कर जाता, आँचल से ढक स्तनपान करवाना
आलोकित करता उसे मातृत्व के अहसास को जीना
स्नेह की मूरत वह , पलकों पे करूणा का छलक आना
माँ कहलाने के खातिर, हर पीङा को हंसके लान्घती,
खुद को खोकर, हर पहलू को निखारती ।
कयी तनाव , संघर्षों से खुद जूझते,
पर पार करती गम के हर पङाव को
अकेली ही झेलती, सहती हर दुःख संताप को
नित नये सवालों से रूबरू, जीवन में उतारती,
खुद को खोकर, हर पहलू को निखारती ।
यह एक बेहतरीन पल, आएगा क्या दुवारा
हर क्षण को जिये, इसे गवाना नहीं गंवारा
इनकी गतिविधियों को, पलकों पे कर क़ैद
“मातृत्वसुख” है हासिल, लेता हर अवसाद हर
रमती बच्चों में, हर क्रियाकलाप को सराहती,
खुद को खोकर, हर पहलू को निखारती ।
माँ जननी ही नहीं, गुरु, मित्र भी, शिशु की होती है
आखरी लम्हों तक, सुत के नाज-नखरे हंसके ढोती है
उसकी विशालता के आगे, हर इंसान की कद छोटी है
अपने सुत-सुता के लिए वह, ईश्वर से बढ़कर होती है
दुनिया भर की दुआओं संग, खुद को भी निसारती,
खुद को खोकर, हर पहलू को निखारती ।
सुमन आर्या

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