मैं हिन्दी
हिन्द भाषाओं का सागर है l
मैं हिन्दी उसमें से एक हूँ , उद्भव मेरी संस्कृत से है l
हिन्द की सारी भाषाओं में भाईचारा था l
अंग्रेजी ने हमें स्वार्थ के लिए बांटा था l
मेरे संस्कार ने आजादी की चिंगारी डाला था l
फिर क्या था मैं इतिहास रचने निकल पड़ा था l
हिंद की कड़ी बनी, शंखनाद किया आजादी का l
मैंने जुल्मों सितम सहा, पर अडिग रहा l
आजादी का मंत्र हिंद के जनमानस में फूंका l
ऐसे मैंने आजादी का इतिहास रचा l
राष्ट्रभाषा का मुझे सम्मान मिला l
मैंने ही संविधान रचा,फिर भी कुछ ने मुझे ठुकराया l
अंग्रेजी ने अहंकार रूपी बीज जो बोया था l
मैंने हर भाषा को अपनाया, समानता का अधिकार दिया l
मैंने ही भेदभाव की जंजीरे तोड़ा, पर मुझे ही धर्म से तोला गया l
वर्षों से आस लगाए बैठा कभी तो मुझे अपनाओगे l
सारे बैर भुला राष्ट्रहित के लिए गले लगाओगे l
Rajiv Mahali
सुन्दर अभिव्यक्ति
Thank you
राष्ट्र हित का संदेश देती हुई बहुत सुंदर रचना।
Thank you
Beutiful poem
Thank you
हिन्दी दिवस पर खूबसूरत रचना, हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Satish ji thank you
सुंदर
Thank you
बहुत सुंदर पंक्तियां
Thank you
Thank you
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