ये खुद नही मरी है ..
ये दृश्य मैंने ही इन आँखों में उतारा है,
ये खुद नही मरी है मैंने इसे मारा है..
ये खुद नही मरी है मैंने इसे मारा है..
दो चार दिन से ही तबियत खराब थी इसकी,
पर हिम्मत क्या कहूँ बेहिसाब थी इसकी..
दवा तो दे न सका, मैंने इसे गाली दी,
ज़िदगी उम्र भर खुली किताब थी इसकी..
आज थक हार इसने कर लिया किनारा है,
ये खुद नही मरी है मैंने इसे मारा है..
मिला जो दुनियाँ से, ना वो खिताब छोड़ सका,
न उसे प्यार दिया, ना शराब छोड़ सका..
हर एक दिन नई शुरुआत से वो बुनती रही,
मैं तोड़ता ही गया जितने ख्वाब तोड़ सका..
हर एक दिन ही इसने मौत सा गुज़ारा है,
ये खुद नही मरी है मैंने इसे मारा है..
हर इक कसौटी पर उतरी ये खरी है साहब,
मरी पहले भी, आज पूरी मरी है साहब..
आज बेजान सी बुत बनके पड़ी है वरना,
खुद इसने कितनों में ही जान भरी है साहब..
मौत के घाट इसे कई दफा उतारा है,
ये खुद नही मरी है मैंने इसे मारा है..
#घरेलूहिंसा
– प्रयाग धर्मानी
वाह वाह, क्या बात है
🙏🙏
बहुत खूब लिखा है आपने, सुन्दर काव्य
🙏🙏
सर्वश्रेष्ठ कवि सम्मान मिलने पर बहुत बहुत बधाई
🙏🙏
Bahut khoob
मेरी उम्मीदों पर खरा उतरने पर बधाई हो सर
शुक्रिया प्रज्ञा जी
Atisunder kavita
सादर धन्यवाद जी
सर आपकी लेखनी को सलाम
बहुत खूबसूरत
🙏🙏
Nice poem
शुक्रिया
भावों को बहुत ही सुन्दर तरीके से शब्दों में पिरोया है। सैल्यूट
बहुत शुक्रिया जी
सुन्दर अभिव्यक्ति ।
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत खूब
🙏🙏
नशे की क्रूरता किस कदर बेरहम हो सकती है सटीक चित्रण करती हुई👍
🙏🙏