लफ्जों की पोटली
लफ्जों की पोटली ,
बांध लो ना तुम ,
क्या कहते हैं ,वो जरा
सुन लो ना तुम,
तब मांपना और तोलना ,
उनकी बातों को ,
फिर वह पोटली खोल देना तुम,
तर्क वितर्क के भीतर नहीं फंसोगे ,
इससे पहले ना बोलना तुम ।
रखते हो राय अगर अलग अपनी,
फिर ना झिझक ना तुम
अगर है सही विचार तुम्हारे,
तो उसे समझाना ,बतलाना जरूर ।
कहीं गर्म ना हो जाए बातों से मसला
लफ्जों की पोटली,
फिर से बांध लेना तुम।
बहुत ही प्रेरणादायक, अगर हम शब्दों को सोच समझकर वार्तालाप करें तो कभी भी हंसी या ईर्ष्या के पात्र नहीं बन सकते
बहुत ही बेहतरीन रचना
बहुत बहुत आभार 🙏
सुन्दर भाव
बहुत बहुत आभार मैम
बहुत खूब
धन्यवाद सर
सही सोंच प्रकट करती कविता
धन्यवाद प्रज्ञा जी
बहुत खूब
धन्यवाद सर
खूबसूरत
धन्यवाद सर
adabhut
Thank you