हमें ये नया साल नहीं स्वीकार
हमें ये नया साल नहीं स्वीकार
जिसमें वही हालात, वही हार
देश में मचा हुआ है हाहाकार
कविता हुई है अब लाचार
ठिठुर रहा गणतंत्र है
जनता कुहरे में कहीं गुम है
घर -घर है अभी तक गरीबी
जन कर रहा गुहार
हमें ये नया साल नहीं स्वीकार
सुन्दर
अच्छी प्रस्तुति
Nice
Good
Nice
Good one
वाह।
Nice
Awesome
👏👏