हिन्दी गजल
गम के आँसू सदा हीं बरसता रहा।
मेरा जीवन खुशी को तरसता रहा।।
मैंने मांगा था कोई ना सोने का घर
प्यार की झोपड़ी को तरसता रहा।
ना तुम्हारा रहा ना हमारा रहा
गेन्द-सा दिल हमेशा उछलता रहा।।
गैर की है दुनिया में तेरी खुशी ,फिर
तेरा मन मेरे मन को काहे लपकता रहा।
जरा बचके निकलना ‘विनयचंद ‘यहाँ
प्यार की राह अश्कों से धधकता रहा।।
😀😀 nice
धन्यवाद
Nyc
Wah✍👍
Shukria
Good
👍
👏👏
बहुत खूब
बनी रहे