हिन्दी हमारी मातृभाषा
एकता के सूत्र में विविधता को पिङोती, जनमानस की भाषा है जो
देवनागरी लिपि में गुथी हुई,अपनी राजभाषा रूप धर आई है जो।
हर जन के दिलों में उमंग सी बहती हुई
अभिलाषा सी हमारे मन में है बसती हुई
हर हिन्दुस्तानी के स्वाभिमान की है आधार वो
हिन्दी हमारी मातृभाषा, राजभाषा रूप धर आई है जो।
अगर सम्मान इस जग में पाना है हमें
हिन्दी भाषी होने का अभिमान लाना होगा हमें
तरक्की के सफ़र में साथ निभाती है वो
हिन्दी हमारी मातृभाषा, राजभाषा रूप धर आई है जो।
हिन्दी हमारी मातृभाषा , गुमान है इसपे हमें
इसके ही बदौलत, पूरे करने हैं अरमान हमें
हर मन में जगे स्वप्न को करती है साकार वो
हिन्दी हमारी मातृभाषा, राजभाषा रूप धर आई है जो। माँ की ममता सी आत्मियता की धार बहती है जिसमें
ममत्व का धर रूप , पर ढाल बन जो बसती है हममें
विविई रूपों में सुशोभित,सादगी की जीवंत प्रतिमान वो
हिन्दी हमारी मातृभाषा, राजभाषा रूप धर आई है जो।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। मातृभाषा हिंदी के सम्मान में हिंदी दिवस पर प्रस्तुत सुन्दर कविता है यह।
बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर प्रस्तुति
सादर आभार
जय हिंद जय हिन्दी
सादर आभार
बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत बहुत धन्यवाद
क्या आप दिखा सकते हैं कि मैने इसे पहले भी डाली है
और रही बात कार्यवाही की तो कहिये मैं आगे से अपनी रचना नहीं डालूंगा
और अगर कोई कविता मैनें दुवारा पोस्ट भी की तो वो भूल वश।
मेरी यह मंशा कभी नहीं रही कि मुझे इससे कुछ फायदा हो ।हर उपाधि आप जैसे योग्य, सचेत और सिर्फ कमी उजागर करने वालो को मुबारक।
ध्यान रखने के लिए आपको भी सादर आभार ।
और हाँ सावन आप से पूर्व मुझे प्राणदायनी के लिए आगाह कर चुका है मैने उसका प्रतिउत्तर भी दिया है प्राण दायणी और संवेदना के लिए
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सादर आभार