“अनाथ आश्रम”
अनाथ आश्रम
★★★★★★★
मेरे माँ-बाप कैसे होंगे
यही सवाल अक्सर मस्तिष्क में गूंजता रहता है
अक्सर मुझे वो काकी याद आ जाती हैं
जिन्होंने मेरी परवरिश बचपन में की थी
उस अनाथ आश्रम में बहुत
से बच्चे थे पर मुझसे कुछ
अलग ही लगाव था उनका
माँ नहीं थीं पर फिर भी माँ जैसा खयाल रखती थीं मेरा
उस अनाथ आश्रम में कभी
अनाथ जैसा महसूस नहीं होता था
सब थे अपने से और दर्द समझते थे
वो काकी आज बहुत याद आ रही हैं
जिनकी गोद में सिर रखकर सोती थी
आज मैं जो कुछ भी हूँ उनके प्यार की वजह से हूँ
आज उसी अनाथ आश्रम में कुछ सहयोग देने आई हूँ
सब मिले हैं पर वो काकी नहीं हैं…
एक अनाथ बच्चे की कोमल भावनाओं को व्यक्त करती हुई कवि प्रज्ञा जी की एक हृदय स्पर्शी रचना
तहेदिल से शुक्रिया महुतरमा
सुंदर