अफ़सोस (शायरी)
मैं किसी फटी डायरी के पन्नों सा,
जो हवा में उड़ रहे है इधर- उधर,
मगर अफसोस ! पढ़ने वाला कोई नहीं।
……..मोहन सिंह मानुष
मैं किसी फटी डायरी के पन्नों सा,
जो हवा में उड़ रहे है इधर- उधर,
मगर अफसोस ! पढ़ने वाला कोई नहीं।
……..मोहन सिंह मानुष
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कम शब्दों में अहम बात कह दी आपने
सादर धन्यवाद 🙏
बहुत बहुत आभार,🙏
nice
वाह वाह
बहुत बहुत धन्यवाद
मन की बात को कोई समझने वाला ना हो तो ,
उस अनुभव को थोड़े शब्दों में कह दिया।
सुंदर प्रस्तुति।
सादर आभार 🙏
Sunder
धन्यवाद जी
आपने तो गागर में सागर भर दिया है मानुष जी
🙏बस ऐसे ही हौसला बढ़ाते रहें यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा बहुत-बहुत धन्यवाद