अब ना ढूंढना कभी……..!!

अब ना ढूंढना कभी
मुझे मन के उजालों में
अंधकार की ओर
बस एक कदम बढ़ा लेना
बिखरें हों जहाँ
कंटक बेशुमार
बस वही पर मेरा निशान मिलेगा…
अब ना ढूंढना कभी
मोतियों की चादर में
धूप की लड़ियों में
याद आए तो
खोज लेना…
स्वप्न में आऊंगी तुम्हारे
तुम्हारी पलकों के द्वार
खट-खटा कर कहूँगी तुमसे
अब ना ढूंढना कभी…………!!

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. अब ना ढूंढना कभी
    मुझे मन के उजालों में
    अंधकार की ओर
    बस एक कदम बढ़ा लेना
    बिखरें हों जहाँ
    कंटक बेशुमार
    बस वही पर मेरा निशान मिलेगा

    वाह वाह ह्रदयविदारक
    भाव
    अति श्रेष्ठ रचना प्रज्ञा जी
    हमें अनुग्रहीत करने और साहित्य से सराबोर करने वाली
    ऐसी ही रचना की तलाश थी
    बहुत ही सुंदर रुबाई लिखी है आपने…
    मुझे आपकी कविता पढ़कर अमृता प्रीतम जी की रचना याद आ गई…
    ” मैं तुम्हें फिर मिलूंगी”
    वैसी ही कल्पना की सजीवता वैसा ही जीवंत एहसास..

    1. धन्यवाद आपका
      मुझे एक सुंदर समीक्षा वा सुंदर विषय प्रदान करने हेतु..
      मेरी कविता मैं तुम्हें फिर मिलूंगी लिखी जा चुकी है..

  2. अब ना ढूंढना कभी
    मुझे मन के उजालों में
    अंधकार की ओर
    बस एक कदम बढ़ा लेना
    बिखरें हों जहाँ
    कंटक बेशुमार
    बस वही पर मेरा निशान मिलेगा…

    नवीन शब्दकोश तथा सुंदर भाव प्रगढ़ता।
    जो कवि की साहित्य साधना को प्रदर्शित करता है

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