अमन चैन न हो

हिन्दी गजल- अमन चैन न हो
सियासत कैसी जिसमे अमन चैन ना हो |
साजिस ऐसी जहा भाई से भाई प्रेम ना हो |
समझते है हम सब जिसे मसीहा अपना |
लगे धारा एक सौ चौवालिस जुलूस बैन ना हो |
चमकाने सियासत किस हद तक जाएँगे |
आलाप बेसुरा राग जिसमे कोई धुन ना हो |
सही को बताकर गलत हासिल होगा ना कुछ |
बनेगा कैसे रहनुमा जिसमे कोई गुण ना हो |
लड़वाकर भाई से भाई को तुम भी ना बचोगे |
खुलेगा नहीं खाता कुर्सी अच्छा सगुण ना हो |
अबतक बनाया उल्लू अब ना बना सकोगे |
नचाओगे कैसे सबको हाथो जब बिन ना हो |
डर है तुमको जमीन अपनी खिसकने का |
दिखेगा दूर तलक कैसे पास दूरबीन ना हो |
फैलाकर दंगा फसाद कुल्हाड़ी पैरो ना मारो |
रहोगे खड़ा कैसे तले पैरो जब जमीन ना हो |
समझो देश की नब्ज आबो हवा को तुम |
रहनुमा वही सर जिसके जुर्म संगीन ना हो |

श्याम कुँवर भारती [राजभर] कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी
बोकारो झारखंड

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