*अरमानों को पलते देख लिया*

मिठाई की दुकान से कुछ दूर,
एक निर्धन बालक को
मैंने कुछ सिक्के गिनते देख लिया
हां, मैंने उस बालक की आंखों में,
एक सपना पलते देख लिया
चाह उसे भी होती होगी,
नए वस्त्र पहनने की
उसकी उसी पुरानी कमीज़ को,
मैंने धोते-सुखाते देख लिया
मैंने पूछा बेटा कुछ लोगे क्या,
वो शरमा कर भाग गया
मैंने उसकी नन्हीं आंखों में,
स्वाभिमान को पलते देख लिया
फ़िर अपनी मां के संग,
उसको मैंने दिए बेचते देखा
मैंने उस बालक के मन के,
अरमानों को पलते देख लिया
हम अपने घरों को
रौशन करने में व्यस्त रहे,
उस निर्धन बालक को
औरों के घरों की चमक देख कर,
ख़ुश होते मैंने देख लिया..

*****✍️गीता

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Responses

  1. उस निर्धन बालक को
    औरों के घरों की चमक देख कर,
    ख़ुश होते मैंने देख लिया..
    वाह क्या बात है, कवि गीता जी की लेखनी की प्रबलता इन पंक्तियों में झलक रही है। बहुत जबरदस्त लेखन। कथ्य व शिल्प दोनों ही अतिउत्तम

    1. आपकी सुन्दर और प्रेरक समीक्षा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी । आपकी समीक्षा सदैव ही मेरा उत्साह वर्धन करती हैं। अभिवादन सर 🙏

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