Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं । मात-पिता को छोड़ अब वह सुत प्यारा, अब तो सास श्वसुर के पास रहते हैं…
दोस्ती से ज्यादा
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अतिसुन्दर
सादर आभार कमला जी
Good
dhanybady
सुंदर
सादर आभार
धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर बहन जी
बहुत ही सुन्दर बहन जी
सब उसमें हैं और वो सबमें
नित अपनों के प्यार को तरस रहा
सब उसके खिलौने में उलझे पड़े
कोई मन शायद कुम्भकार को तरस रहा
सादर आभार भाई
वाह,सुमन जी बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर, खूबसूरत अभिव्यक्ति
अच्छा है