अश्क मेरे
अश्क जो बहे नयनों से
लुढ़के गालों पे मेरे
किसी ने ही देखे
अनदेखे ही हुऐ
अश्क जो अटके गले में
गटके हर सांस में
ना देखे किसी ने
अनदेखे ही रहे
तोड़े मुझे हर बार भीतर से
च़टके कुछ ज़ोर से
बिन किसी शौर के।
सुधार के लिए सुझाव का स्वागत है।
बहुत ही हृदय स्पर्शी पंक्तियां हैं अनु जी
कविता की तीसरी पंक्ति में ” किसी ने नहीं देखे ” होना चाहिए था।
ये टाइपिंग गलती भी ही सकती है।
अति भाव पूर्ण रचना, बहुत सुंदर
समीक्षा के लिए धन्यवाद गीता जी
बहुत खूब सुंदर चित्रण
धन्यवाद जी
आपकी यह रचना पढ़कर मन में यही
आ रहा है अनु..
कि थोड़ी और होती पंक्तियां, थोड़े और अश्क बहते,
थोड़ा और आनन्द आता…
जिस प्रकार आपने आँसुओं की जीवनलीला का बखान किया है उत्तम है आपने अपनी कविता को रुमानी अन्दाज में पेश किया है..अगर मैं कहूं कि यह कविता आपकी सभी कविताओं में मुझे बेहतर लगी तो गलत ना होगा..आपकी कविता में अधूरापन नहीं है परंतु मन यही कहता है थोड़ी और बात होती
थोड़े और अश्क बहते…
थोड़े और अश्क बहते….
मन का बोझ हल्का कर जाते
सांसों की गति तीव्र कर गाते
उदर में मीठी चाशनी से रास्ते
थोड़े और अश्क बहते……
धन्यवाद प्रज्ञा जी प्रोत्साहन के लिए
समीक्षा के लिए धन्यवाद
रास्ते नही रसते
बहुत खूब अनु..
आती रहा करिये, अच्छा लगता है..
बहुत ही सुन्दर भाव है।
धन्यवाद जी
अश्क ने जोड़ा हमेशा
छूटे को अपना बनाया है
टूटे तन की पीड़ हरकर
मन का बोझ मिटाया है
बहुत सुंदर अनु जी।
शुक्रिया जी
Nice
Thanks