आइनस्टाईन जी कहते हैः-
आइनस्टाईन जी कहते हैः-
हम सबसे एक जैसा बात करते हैं, चाहे वह कुड़ा उठाने वाला बालक हो
या चाहे वह किसी विश्वाविद्यालय का आचर्य हो
कुल लोग जहां में मजदुर को हीन समझते हैं,इन्हें दलित वर्ग की श्रेणी देते है ।
इन्हें गलत-गलत कह-कहके ,इनके मनोबल को ठेस पहुँचाते हैं ।
इनके काम को काम नहीं, मजबुरी का नाम देते है ।
सच बात है तेरी दुनियावालों, लोग मजबुरी में ही मजदुरी करते है ।
इसका मतलब कदापि ये नहीं किः-इनके पास कोई काबिलियत नहीं ।
ये देश को भोल-भाले जनता होते है, सोच के निर्मल बुद्धि वाले होते है ।
मिट्टी में खेले बड़े हुये रहते है, धरती को माता पिता आसमान को समझने वाले होते है ।
धरती से सोना उगाने वाला यही किसान-मजदुर हुआ करते है ।
ये देश के वीर सपुत होते हैः- राष्ट्रद्रोही नहीं कहलाते हैं ये ।
अपनी भोग-विलास के लिए ये, विदेशों में नहीं बस जाते है ये ।
ये शिक्षित नहीं होते, पर शिक्षित होने का पूर्ण अर्थ समझते है ।
ये उन लोगों में नहीं होते जो पढ़-लिखकर प्रतिभापलायन शब्द को
गले में बेशकिमति हार की तरह पहनते हैं ।
ये उच्च-आदर्श के होते है, इन्हें अपनी मातृभूमि से प्यार होता है ।
ये जिस धरा पे रहते है, उस धरा की सम्मान करते हैं ये ।
👌
कूड़ा
धन्यवाद सर जी ।।
वर्तनी बहुत अशुद्ध है
एक जैसा बात करते है के स्थान पर, एक जैसी बात करते है होना चाहिए
” मजदुर” के स्थान पर मजदूर लिखिये।
मज़बूरी होता है ,मजबुरी नहीं ।
मजदूरी सही शब्द है ना कि मजदुरी ।
मण्डुकभाष