एक जैसे मुसफिरोकी मुलाकात हुई थी
एक जैसे मुसफिरोकी मुलाकात हुई थी
अर्सो बाद जिंदगी आफरीन हुई थी
एक जैसे मुसफिरोकी मुलाकात हुई थी
शकसियत तो सबकी बेबाक थी
जमुरियत मे थोडी, मुरझा सी गयी थी
जब आन पडे आमने सामने
आगाज-ए-नये-दौर की मेहेक आगायी थी
एक जैसे मुसफिरोकी…. मुलाकात हुई थी
फलसफा उनका एक ही था
फिरदोउस भी उनका एक ही था
फकत जिस्म थे उनके अलग
पर कुरबत सबमे एक सी थी
एक जैसे मुसफिरोकी…. मुलाकात हुई थी
मयखानो की जरूरत अब फिझहूल थी
दोस्ती ही नशे सी चढ गई थी
मयस्सार थे एक दुजे के लिये वो
रंजीशे कही आसपास भी ना थी
एक जैसे मुसफिरोकी…. मुलाकात हुई थी
एक सुकून सा है साथ तुम्हारे यारो
हम रफीक् भी है ओर रिशतेदार भी
नायाब सा बन बैठा है रिशता हमारा
तस्किन-इ-परचम रहा है लेहरा
एक जैसे मुसफिरोका ,……चल रहा है कारवा
डर कल भी था…..
डर कल भी रहेगा…..……..
क्या ये कारवा युही चलता रहेगा !!!!!!….
या बस कही थम जायेगा !!!!!!…….
केहते है दोस्ती वो मिलकीयत है
जहाँ ना कोई हुक्म है ना कोई इलतजा
ये तो जसबातो की परस्तीश है
जो खुशनसीबोको मिली बक्षिसं है
ख्वाहिश् यही हैं के
इसका वजुद मेरे वजूद तक बरकरार रहे
एक जैसे मुसाफिरोकी, ….मुलाकात होती रहे
एक जैसे मुसाफिरोकी,…..मुलाकात होती रहे
मुसाफ़िरोका , यह लिखना चाहता था , टाइपिंग मिस्टेक होगया है
बहुत खूब
thank you, It was mainly written for my friend circle. I never want to loose them 🙂
Oh! Great
बहुत सुंदर
✍👌
Very nice
अति, अतिसुंदर भाव
Dhanyawaad 😊
Very nice lines