एहसास
कुछ एहसास हैं जो आकर ठहर गये हैं
ज़बान की नोंक पर…
होंठो की सीमाएँ लाँघने को आतुर,
बस उमड़ पड़ना चाहते हैं एक
अंतर्नाद करते हुए…!!
मगर उन एहसासों के पैर बंधे हुए हैं
एक डर की ज़ंजीर से…!!
वही जाना-पहचाना डर “उसे खो देने का”
जिसे पाया है बड़ी मुश्किल से
या फिर इस भ्रम के टूट जाने का
कि हाँ! वो मेरा है…!!
सच कुछ एहसास कितने बदनसीब होते हैं
लफ्ज़ों के साँचे में ढलते ही बिखेर कर
रख देते हैं ख्यालों की खूबसूरत दुनिया को..!!
कुछ रुई के फाहों से कोमल सपनें खो
देते हैं अपनी धवलता उन शब्दों के
पैरों तले दबकर..!!
आख़िर कितना न्यायसंगत है उन एहसासों
को हकीकत के धरातल पर उतारना
बेहतर यही है कि वो दम तोड़ दें
हलक के भीतर ही….!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(05/03/2021)
Dil Ke Jazbaat to ko kuredhi Hui Rachna
वाह
Welcome
“मगर उन एहसासों के पैर बंधे हुए हैं
एक डर की ज़ंजीर से…!!बेहतर यही है कि वो दम तोड़ दें
हलक के भीतर ही….!!”
________हलक से नीचे उतर कर वो एहसास,
________दम नहीं तोड़ते, करते हैं हृदय में वास
, हृदय के भावों को बताती हुई,बहुत सुन्दर रचना है सखि…❤️🌹
धन्यवाद सखि
वाह