कदम

डगमगा जाते हैं कदम आजकल
एक जरा से झोंके से मगर,
एक वक्त था जब हमारे इरादे
बुलंद हुआ करते थे..

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. मुझे लगता है कि आपकी कविता अधूरी है क्योंकि इससे कोई भी मैसेज या अर्थ निकालना मुश्किल है

    1. वसुधरा जी मैं आपकी बात का सम्मान करती हूँ परंतु
      बता दूँ की इस 2liner shayri का अर्थ क्या है…

      “जरा सी तकलीफ या मुसीबत से आजकल कदम (हौसला) डगमगा जाता है…
      पर एक वक्त वह भी था जब कठिन से कठिन परिस्थिति का सामना करने में कोई परेशानी नही होती थी परंतु अब ऐसा नहीं है”….
      यह था आशय जिसे कम में ज्यादा समझिये…

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