करो परिश्रम ——

करो परिश्रम कठिनाई से,
जब तक पास तुम्हारे तन है ।
लहरों से तुम हार मत मानो,
ये बात सीखो त
जब मँक्षियारा नाव चलाता,
विचलित नहीं होता वह विपरित धाराओं से ।
लाख सुनामी चक्रवात बबंडर से टकराकर
वह लक्षय को भेद जाता है ।
आखिर गगन की जयघोष की नारा से
उसकी आँखें नम जाता है ।।1।।
————————————————–
निरन्तर, कठिनाई, परिश्रम में ही
छिपा भविष्य तेरे बंदे है ।
परिश्रम, कठिनाई, निरन्तरता से
कभी मुँह मत मोड़ना बंदे ,
यहीं तो तेरे भाग्य-विधाता है ।
करे परिश्रम कठिनाई से जो नर
वही तो पाते अपना भविष्य-लक्ष्य है ।
कर्महीन, विषयरम, इन्द्रियसंर्लिप्त मनुष्य
ऐसे ही जग में जीवन गँवाते है ।
और अर्थ-अभाव दर-दर मारे फिरते है ।।2
——————————————————–
तन है चोला मिट्टी का,
वस्त्र तेरे कोई शान नहीं ।
मिट्टी में मिट्टी मिल जायेंगे ,
वस्त्र तेरे उतार लिये जायेंगे ।
कर लो सदुपयोग नर तन का,
यहीं तो काम आवेंगे ।।
—————————————
जो नर मिट्टी को मिट्टी समझे,
कड़ी -धुप में अन्न उगाते (बीज बोते) ।
वहीं फसल काटते छाँव में ।।
ऐसे ही नर कहलाते जगत में
दिव्यस्वरूप महान है ।
करो परिश्रम कठिनाइ से
जब तक पास तुम्हारे तन है ।।3।।
—————————————————
परिश्रम, कठिनाई, असफलता,
निरंतरता सफलता के हैं चार स्तम्भ ।
इन चारों स्तम्भों से गुजारना ही
सफलता के हैं प्रथम उद्देश्य है ।
निरन्तरता नर को गुणों को निखारता,
परिश्रम किसी कर्म के योग्य बनाता ।
असफलता सफलता की पहली सीढ़ी होती
व जीवन की कठिनाई हैं सफलता की गगनचुंबी ।
करो परिश्रम कठिनाई से
जब-तक पास तुम्हारे तन है ।।
लहरों से तुम हार मत मानो
ये बात सीखो तुम मँझियारा से ।।
कवि विकास कुमार
करो परिश्रम कठिनाई से,
जब तक पास तुम्हारे तन है ।
लहरों से तुम हार मत मानो,
ये बात सीखो त
जब मँक्षियारा नाव चलाता,
विचलित नहीं होता वह विपरित धाराओं से ।
लाख सुनामी चक्रवात बबंडर से टकराकर
वह लक्षय को भेद जाता है ।
आखिर गगन की जयघोष की नारा से
उसकी आँखें नम जाता है ।।1।।
————————————————–
निरन्तर, कठिनाई, परिश्रम में ही
छिपा भविष्य तेरे बंदे है ।
परिश्रम, कठिनाई, निरन्तरता से
कभी मुँह मत मोड़ना बंदे ,
यहीं तो तेरे भाग्य-विधाता है ।
करे परिश्रम कठिनाई से जो नर
वही तो पाते अपना भविष्य-लक्ष्य है ।
कर्महीन, विषयरम, इन्द्रियसंर्लिप्त मनुष्य
ऐसे ही जग में जीवन गँवाते है ।
और अर्थ-अभाव दर-दर मारे फिरते है ।।2
——————————————————–
तन है चोला मिट्टी का,
वस्त्र तेरे कोई शान नहीं ।
मिट्टी में मिट्टी मिल जायेंगे ,
वस्त्र तेरे उतार लिये जायेंगे ।
कर लो सदुपयोग नर तन का,
यहीं तो काम आवेंगे ।।
—————————————
जो नर मिट्टी को मिट्टी समझे,
कड़ी -धुप में अन्न उगाते (बीज बोते) ।
वहीं फसल काटते छाँव में ।।
ऐसे ही नर कहलाते जगत में
दिव्यस्वरूप महान है ।
करो परिश्रम कठिनाइ से
जब तक पास तुम्हारे तन है ।।3।।
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परिश्रम, कठिनाई, असफलता,
निरंतरता सफलता के हैं चार स्तम्भ ।
इन चारों स्तम्भों से गुजारना ही
सफलता के हैं प्रथम उद्देश्य है ।
निरन्तरता नर को गुणों को निखारता,
परिश्रम किसी कर्म के योग्य बनाता ।
असफलता सफलता की पहली सीढ़ी होती
व जीवन की कठिनाई हैं सफलता की गगनचुंबी ।
करो परिश्रम कठिनाई से
जब-तक पास तुम्हारे तन है ।।
लहरों से तुम हार मत मानो
ये बात सीखो तुम मँझियारा से ।।4।।
कवि विकास कुमार

कोई किसी से कम नहीं हैं
क्योंकि सब एक हैं
करो परिश्रम कठिनाई से,
जब तक पास तुम्हारे तन है ।
लहरों से तुम हार मत मानो,
ये बात सीखो त
जब मँक्षियारा नाव चलाता,
विचलित नहीं होता वह विपरित धाराओं से ।
लाख सुनामी चक्रवात बबंडर से टकराकर
वह लक्षय को भेद जाता है ।
आखिर गगन की जयघोष की नारा से
उसकी आँखें नम जाता है ।।1।।
————————————————–
निरन्तर, कठिनाई, परिश्रम में ही
छिपा भविष्य तेरे बंदे है ।
परिश्रम, कठिनाई, निरन्तरता से
कभी मुँह मत मोड़ना बंदे ,
यहीं तो तेरे भाग्य-विधाता है ।
करे परिश्रम कठिनाई से जो नर
वही तो पाते अपना भविष्य-लक्ष्य है ।
कर्महीन, विषयरम, इन्द्रियसंर्लिप्त मनुष्य
ऐसे ही जग में जीवन गँवाते है ।
और अर्थ-अभाव दर-दर मारे फिरते है ।।2
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तन है चोला मिट्टी का,
वस्त्र तेरे कोई शान नहीं ।
मिट्टी में मिट्टी मिल जायेंगे ,
वस्त्र तेरे उतार लिये जायेंगे ।
कर लो सदुपयोग नर तन का,
यहीं तो काम आवेंगे ।।
—————————————
जो नर मिट्टी को मिट्टी समझे,
कड़ी -धुप में अन्न उगाते (बीज बोते) ।
वहीं फसल काटते छाँव में ।।
ऐसे ही नर कहलाते जगत में
दिव्यस्वरूप महान है ।
करो परिश्रम कठिनाइ से
जब तक पास तुम्हारे तन है ।।3।।
—————————————————
परिश्रम, कठिनाई, असफलता,
निरंतरता सफलता के हैं चार स्तम्भ ।
इन चारों स्तम्भों से गुजारना ही
सफलता के हैं प्रथम उद्देश्य है ।
निरन्तरता नर को गुणों को निखारता,
परिश्रम किसी कर्म के योग्य बनाता ।
असफलता सफलता की पहली सीढ़ी होती
व जीवन की कठिनाई हैं सफलता की गगनचुंबी ।
करो परिश्रम कठिनाई से
जब-तक पास तुम्हारे तन है ।।
लहरों से तुम हार मत मानो
ये बात सीखो तुम मँझियारा से ।।
कवि विकास कुमार
करो परिश्रम कठिनाई से,
जब तक पास तुम्हारे तन है ।
लहरों से तुम हार मत मानो,
ये बात सीखो त
जब मँक्षियारा नाव चलाता,
विचलित नहीं होता वह विपरित धाराओं से ।
लाख सुनामी चक्रवात बबंडर से टकराकर
वह लक्षय को भेद जाता है ।
आखिर गगन की जयघोष की नारा से
उसकी आँखें नम जाता है ।।1।।
————————————————–
निरन्तर, कठिनाई, परिश्रम में ही
छिपा भविष्य तेरे बंदे है ।
परिश्रम, कठिनाई, निरन्तरता से
कभी मुँह मत मोड़ना बंदे ,
यहीं तो तेरे भाग्य-विधाता है ।
करे परिश्रम कठिनाई से जो नर
वही तो पाते अपना भविष्य-लक्ष्य है ।
कर्महीन, विषयरम, इन्द्रियसंर्लिप्त मनुष्य
ऐसे ही जग में जीवन गँवाते है ।
और अर्थ-अभाव दर-दर मारे फिरते है ।।2
——————————————————–
तन है चोला मिट्टी का,
वस्त्र तेरे कोई शान नहीं ।
मिट्टी में मिट्टी मिल जायेंगे ,
वस्त्र तेरे उतार लिये जायेंगे ।
कर लो सदुपयोग नर तन का,
यहीं तो काम आवेंगे ।।
—————————————
जो नर मिट्टी को मिट्टी समझे,
कड़ी -धुप में अन्न उगाते (बीज बोते) ।
वहीं फसल काटते छाँव में ।।
ऐसे ही नर कहलाते जगत में
दिव्यस्वरूप महान है ।
करो परिश्रम कठिनाइ से
जब तक पास तुम्हारे तन है ।।3।।
—————————————————
परिश्रम, कठिनाई, असफलता,
निरंतरता सफलता के हैं चार स्तम्भ ।
इन चारों स्तम्भों से गुजारना ही
सफलता के हैं प्रथम उद्देश्य है ।
निरन्तरता नर को गुणों को निखारता,
परिश्रम किसी कर्म के योग्य बनाता ।
असफलता सफलता की पहली सीढ़ी होती
व जीवन की कठिनाई हैं सफलता की गगनचुंबी ।
करो परिश्रम कठिनाई से
जब-तक पास तुम्हारे तन है ।।
लहरों से तुम हार मत मानो
ये बात सीखो तुम मँझियारा से ।।
कवि विकास कुमार

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