कविता : समय का पहिया

मानो तो मोती ,अनमोल है समय
नहीं तो मिट्टी के मोल है समय
कभी पाषाण सी कठोरता सा है समय
कभी एकान्त नीरसता सा है समय
समय किसी को नहीं छोड़ता
किसी के आंसुओं से नहीं पिघलता
समय का पहिया चलता है
चरैवेति क्रम कहता है
स्वर्ण महल में रहने वाले
तेरा मरघट से नाता है
सारे ठौर ठिकाने तजकर
मानव इसी ठिकाने आता है ||
भूले से ऐसा ना करना
अपनी नजर में गिर जाए पड़ना
ये जग सारा बंदी खाना
जीव यहाँ आता जाता है
विषय ,विलास ,भोग वैभव सब देकर
खूब वो छला जाता है
समय का पहिया चलता है
चरैवेति क्रम कहता है
जग के खेल खिलाने वाले को
मूरख तू खेल दिखाता है ||
कर्म बिना सफल जनम नहीं है
रौंदे इंसा को वो धरम नहीं है
दिलों को नहीं है पढ़ने वाले
जटिलताओं का अब दलदल है
भाग दौड़ में जीवन काटा
जोड़ा कितना नाता है
अन्तिम साथ चिता जलने को
कोई नहीं आता है
समय का पहिया चलता है
चरैवेति क्रम कहता है
मानवता को तज कर मानव
खोटे सिक्कों में बिक जाता है ||

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Responses

  1. समय का पहिया चलता है
    चरैवेति क्रम कहता है
    मानवता को तज कर मानव
    खोटे सिक्कों में बिक जाता है ||
    —– अति सुन्दर पंक्तियां, बहुत सुंदर प्रस्तुति

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