कविता
असम्भव है तुम्हें परिभाषा के
दायरे में बांधना..
तुम हो वो सागर, जिसमें विलीन होता
है व्याकुलता का दरिया..
या निष्प्राण मन के भीतर बसी नीरवता को
चीर के उपजी स्नेहमय अनुगूँज..!!
एक बजंर हृदय के धरातल पर सहसा
फूटता हुआ भावों का सोता..
या फिर एक नज़रिया, जो हर दृष्टिगोचर
में अंतर्निहित वास्तविक सत्य को
उजागर करने का..!!
कविता! तुम पर्याय हो मेरे लिए
‘सार्थकता’ की अनुभूति का..!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(21/03/21)
कविता! तुम पर्याय हो मेरे लिए
‘सार्थकता’ की अनुभूति का..!!
——— वाह, बहुत खूब, अति उत्तम प्रस्तुति। बहुत सुंदर कविता।
असम्भव है तुम्हें परिभाषा के
दायरे में बांधना..
तुम हो वो सागर, जिसमें विलीन होता
है व्याकुलता का दरिया..
_________ कविता की बहुत सुन्दर व्याख्या की है कवि अनु जी ने ।
लाजवाब अभिव्यक्ति और बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद सखि…कविता दिवस की शुभकामनाएं
अतिसुंदर
असम्भव है तुम्हें परिभाषा के
दायरे में बांधना..
तुम हो वो सागर, जिसमें विलीन होता
है व्याकुलता का दरिया..
या निष्प्राण मन के भीतर बसी नीरवता को
चीर के उपजी स्नेहमय अनु…
कविता की व्यापकता को बतलाती और अपनी समाहार शक्ति को परिभाषित करती हुई कविता