क्या इतना बुरा हो गया हूं मैं
देखकर मुस्कुराते भी नही
क्या इतना बुरा हो गया हूं मैं
हर बार आप-आप कहती हो
सच्ची, इतना बड़ा हो गया हूं मैं
बचपन मे तो छोटी रजाई इतनी लंबी बातें थी तेरी
अपने पैरों पर खड़े होने से तन्हा सा हो गया हूं मैं
रश्क खाते थे दोस्त मेरे
जब हम साथ चलते थे
कितने अच्छे थे दिन
तेरे गम मेरी खुशी से गले मिलते थे
अब तेरी चुप्पी मेरे दिल में चीखती चिल्लाती है
कभी क्या था तेरे लिए, अब क्या हो गया हूँ मैं
कभी दो पल बैठ जा, इल्तजा है
इतनी दूरी, ऐसी क्या वजह है
तेरे चेहरे पर जिसने पहले की रंगत देखी हो
उसको बेनूर देख कर, कितनी बार मर गया हूं मैं
माना मैं तेरा सगा नही कोई
पर सच मान दिल मे दगा नही कोई
ले मेरा सर झुका है तेरे आगे, थाम ले या काट दे
मैं तेरा दोस्त नही फिर, जो उफ भी कर गया हूँ मैं
ए खुदा, किसी को ऐसा बचपन न दे
बचपन दे तो ऐसी दोस्त ना दे
दोस्त दे तो फिर छूटने की वजह न दे
वजह दे तो फिर जिंदगी ना दे
मैंने जिस की खुशी के लिए, जिंदगी उधार की तुझसे
क्यों उसकी एक हंसी के लिए तरस गया हूं मैं
प्रवीनशर्मा
मौलिक स्वरचित
बचपन के दोस्त को याद करती हुई सुन्दर पंक्तियाँ, बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
शुक्रिया गीता जी
अति सुन्दर।
आभार🙏🙏
अति उत्तम प्रस्तुति
बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुति
धन्यवाद प्रज्ञा जी