गजल- मै ही अंदर था |

गजल- मै ही अंदर था |
बहर – मुजतस मुसम्मन मखमुन महजूफ
अरकान -मुफाएलुन फ़एलातुन मुफाएलुन फेलून
1212 1122 1212 22
काफिया – दर ,रदीफ़ – था
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ढूँढना उसे कहा जिधर देखो उसी का मंजर था |
जब कुए मे झांक कर देखा तो मै ही अंदर था |
नजर उठा कर देखो हर तरफ उसी का नजारा है |
करके सजदा देखा दीदार उसका कितना सुंदर था |
दिखता नहीं वो गर लगा लिया चशमा बुराई का |
दिल से पुकार देखा उमड़ता प्यार का संन्दर था |
चाहत नफरत मोहब्बत सब उसी का बदला रूप |
जिसने जितना चाहा उसे वही मस्त कलंदर था |
मीरा का श्याम रुक्कमनी सत्यभामा कृष्ण कहो |
गोप गोपिया ही नहीं कान्हा राधा का दिलवर था |
मंदिर मस्जिद या गिरिजा गुरुद्वारा मे ढूंढो उसे |
दिल से मानो खुदा वरना पड़ा रास्ते का पत्थर था |
आई जो मुसीबत क्यो इतना घबराते भारती तुम |
हाथ दोनों उठाकर जो पुकारा वही हमारा रहबर था |

श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286

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