Categories: मुक्तक
Tags: संपादक की पसंद
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पत्थरों की तरह आदतें हो गयीं
हम भी रोये नहीं मुद्दतें हो गयीं। पत्थरों की तरह आदतें हो गयीं। जबसे बेताज वह बादशाह बन गया, पगड़ियों पर बुरी नीयतें हो गयीं।…
आज देखो दुनिया क्या से क्या हो गयी
हंसी ख़ुशी कहीं ,गम की वादियों में खो गयी आज देखो दुनिया क्या से क्या हो गयी दूसरों की सफलता पर ,जो बजती थी तालियाँ…
बरसात
ये कहानी कुछ यूँ तय्यार हों गयीं की एक शख़्सियत बस उनपर फ़िदा हों गयीं ..! बस देखने से ही शूरवात हों गयीं फिर तो…
अपहरण
” अपहरण “हाथों में तख्ती, गाड़ी पर लाउडस्पीकर, हट्टे -कट्टे, मोटे -पतले, नर- नारी, नौजवानों- बूढ़े लोगों की भीड़, कुछ पैदल और कुछ दो पहिया वाहन…
कुछ दिल की सुनी जाये
चलो रस्मों रिवाज़ों को लांघ कर कुछ दिल की सुनी जाये कुछ मन की करी जाये एक लिस्ट बनाते हैं अधूरी कुछ आशाओं की उस…
🤐
Thanks for comment
वाह
Thanks
nice
Thanks
भावना अच्छी है परंतु उपमा नहीं
बहुत खूब
जिंदगी की तुलना बिस्किट से की गई है यह एक नवीन प्रयोग है तथा बहुत ही सुंदर प्रयोग है